Tuesday 3 December 2019

गोदान -प्रेमचंद

भाग 1



होरीराम ने दोनों बैलों को सानी-पानी दे कर अपनी स्त्री धनिया से कहा - गोबर को ऊख गोड़ने भेज देना। मैं न जाने कब लौटूँ। जरा मेरी लाठी दे दे। धनिया के दोनों हाथ गोबर से भरे थे। उपले पाथ कर आई थी। बोली - अरे, कुछ रस-पानी तो कर लो। ऐसी जल्दी क्या है? होरी ने अपने झुर्रियों से भरे हुए माथे को सिकोड़ कर कहा - तुझे रस-पानी की पड़ी है, मुझे यह चिंता है कि अबेर हो गई तो मालिक से भेंट न होगी। असनान-पूजा करने लगेंगे, तो घंटों बैठे बीत जायगा। 'इसी से तो कहती हूँ, कुछ जलपान कर लो और आज न जाओगे तो कौन हरज होगा! अभी तो परसों गए थे।'


'तू जो बात नहीं समझती, उसमें टाँग क्यों अड़ाती है भाई! मेरी लाठी दे दे और अपना काम देख। यह इसी मिलते-जुलते रहने का परसाद है कि अब तक जान बची हुई है, नहीं कहीं पता न लगता कि किधर गए। गाँव में इतने आदमी तो हैं, किस पर बेदखली नहीं आई, किस पर कुड़की नहीं आई। जब दूसरे के पाँवों-तले अपनी गर्दन दबी हुई है, तो उन पाँवों को सहलाने में ही कुसल है।'


धनिया इतनी व्यवहार-कुशल न थी। उसका विचार था कि हमने जमींदार के खेत जोते हैं, तो वह अपना लगान ही तो लेगा। उसकी खुशामद क्यों करें, उसके तलवे क्यों सहलाएँ। यद्यपि अपने विवाहित जीवन के इन बीस बरसों में उसे अच्छी तरह अनुभव हो गया था कि चाहे कितनी ही कतर-ब्योंत करो, कितना ही पेट-तन काटो, चाहे एक-एक कौड़ी को दाँत से पकड़ो; मगर लगान का बेबाक होना मुश्किल है। फिर भी वह हार न मानती थी, और इस विषय पर स्त्री-पुरुष में आए दिन संग्राम छिड़ा रहता था। उसकी छ: संतानों में अब केवल तीन जिंदा हैं, एक लड़का गोबर कोई सोलह साल का, और दो लड़कियाँ सोना और रूपा, बारह और आठ साल की। तीन लड़के बचपन ही में मर गए। उसका मन आज भी कहता था, अगर उनकी दवा-दवाई होती तो वे बच जाते; पर वह एक धेले की दवा भी न मँगवा सकी थी। उसकी ही उम्र अभी क्या थी। छत्तीसवाँ ही साल तो था; पर सारे बाल पक गए थे, चेहरे पर झुर्रियाँ पड़ गई थीं। सारी देह ढल गई थी, वह सुंदर गेहुँआँ रंग सँवला गया था, और आँखों से भी कम सूझने लगा था। पेट की चिंता ही के कारण तो। कभी तो जीवन का सुख न मिला। इस चिरस्थायी जीर्णावस्था ने उसके आत्मसम्मान को उदासीनता का रूप दे दिया था। जिस गृहस्थी में पेट की रोटियाँ भी न मिलें, उसके लिए इतनी खुशामद क्यों? इस परिस्थिति से उसका मन बराबर विद्रोह किया करता था, और दो-चार घुड़कियाँ खा लेने पर ही उसे यथार्थ का ज्ञान होता था।

उसने परास्त हो कर होरी की लाठी, मिरजई, जूते, पगड़ी और तमाखू का बटुआ ला कर सामने पटक दिए।
होरी ने उसकी ओर आँखें तरेर कर कहा - क्या ससुराल जाना है, जो पाँचों पोसाक लाई है? ससुराल में भी तो कोई जवान साली-सलहज नहीं बैठी है, जिसे जा कर दिखाऊँ।
होरी के गहरे साँवले, पिचके हुए चेहरे पर मुस्कराहट की मृदुता झलक पड़ी। धनिया ने लजाते हुए कहा - ऐसे ही बड़े सजीले जवान हो कि साली-सलहजें तुम्हें देख कर रीझ जाएँगी।
होरी ने फटी हुई मिरजई को बड़ी सावधानी से तह करके खाट पर रखते हुए कहा - तो क्या तू समझती है, मैं बूढ़ा हो गया? अभी तो चालीस भी नहीं हुए। मर्द साठे पर पाठे होते हैं।

'जा कर सीसे में मुँह देखो। तुम-जैसे मर्द साठे पर पाठे नहीं होते। दूध-घी अंजन लगाने तक को तो मिलता नहीं, पाठे होंगे। तुम्हारी दसा देख-देख कर तो मैं और भी सूखी जाती हूँ कि भगवान यह बुढ़ापा कैसे कटेगा? किसके द्वार पर भीख माँगेंगे?'
होरी की वह क्षणिक मृदुता यथार्थ की इस आँच में झुलस गई। लकड़ी सँभलता हुआ बोला - साठे तक पहुँचने की नौबत न आने पाएगी धनिया, इसके पहले ही चल देंगे।

धनिया ने तिरस्कार किया - अच्छा रहने दो, मत असुभ मुँह से निकालो। तुमसे कोई अच्छी बात भी कहे, तो लगते हो कोसने।
होरी कंधों पर लाठी रख कर घर से निकला, तो धनिया द्वार पर खड़ी उसे देर तक देखती रही। उसके इन निराशा-भरे शब्दों ने धनिया के चोट खाए हुए हृदय में आतंकमय कंपन-सा डाल दिया था। वह जैसे अपने नारीत्व के संपूर्ण तप और व्रत से अपने पति को अभय-दान दे रही थी। उसके अंत:करण से जैसे आशीर्वादों का व्यूह-सा निकल कर होरी को अपने अंदर छिपाए लेता था। विपन्नता के इस अथाह सागर में सोहाग ही वह तृण था, जिसे पकड़े हुए वह सागर को पार कर रही थी। इन असंगत शब्दों ने यथार्थ के निकट होने पर भी, मानो झटका दे कर उसके हाथ से वह तिनके का सहारा छीन लेना चाहा। बल्कि यथार्थ के निकट होने के कारण ही उनमें इतनी वेदना-शक्ति आ गई थी। काना कहने से काने को जो दु:ख होता है, वह क्या दो आँखों वाले आदमी को हो सकता है?


होरी कदम बढ़ाए चला जाता था। पगडंडी के दोनों ओर ऊख के पौधों की लहराती हुई हरियाली देख कर उसने मन में कहा - भगवान कहीं गौं से बरखा कर दे और डाँड़ी भी सुभीते से रहे, तो एक गाय जरूर लेगा। देसी गाएँ तो न दूध दें, न उनके बछवे ही किसी काम के हों। बहुत हुआ तो तेली के कोल्हू में चले। नहीं, वह पछाईं गाय लेगा। उसकी खूब सेवा करेगा। कुछ नहीं तो चार-पाँच सेर दूध होगा? गोबर दूध के लिए तरस-तरस रह जाता है। इस उमिर में न खाया-पिया, तो फिर कब खाएगा? साल-भर भी दूध पी ले, तो देखने लायक हो जाए। बछवे भी अच्छे बैल निकलेंगे। दो सौ से कम की गोंई न होगी। फिर गऊ से ही तो द्वार की सोभा है। सबेरे-सबेरे गऊ के दर्सन हो जायँ तो क्या कहना! न जाने कब यह साध पूरी होगी, कब वह सुभ दिन आएगा!


हर एक गृहस्थ की भाँति होरी के मन में भी गऊ की लालसा चिरकाल से संचित चली आती थी। यही उसके जीवन का सबसे बड़ा स्वप्न, सबसे बड़ी साध थी। बैंक के सूद से चैन करने या जमीन खरीदने या महल बनवाने की विशाल आकांक्षाएँ उसके नन्हें-से हृदय में कैसे समातीं !


जेठ का सूर्य आमों के झुरमुट से निकल कर आकाश पर छाई हुई लालिमा को अपने रजत-प्रताप से तेज प्रदान करता हुआ ऊपर चढ़ रहा था और हवा में गरमी आने लगी थी। दोनों ओर खेतों में काम करने वाले किसान उसे देख कर राम-राम करते और सम्मान-भाव से चिलम पीने का निमंत्रण देते थे; पर होरी को इतना अवकाश कहाँ था? उसके अंदर बैठी हुई सम्मान-लालसा ऐसा आदर पा कर उसके सूखे मुख पर गर्व की झलक पैदा कर रही थी। मालिकों से मिलते-जुलते रहने ही का तो यह प्रसाद है कि सब उसका आदर करते हैं, नहीं उसे कौन पूछता- पाँच बीघे के किसान की बिसात ही क्या? यह कम आदर नहीं है कि तीन-तीन, चार-चार हल वाले महतो भी उसके सामने सिर झुकाते हैं।


अब वह खेतों के बीच की पगडंडी छोड़ कर एक खलेटी में आ गया था, जहाँ बरसात में पानी भर जाने के कारण तरी रहती थी और जेठ में कुछ हरियाली नजर आती थी। आस-पास के गाँवों की गउएँ यहाँ चरने आया करती थीं। उस उमस में भी यहाँ की हवा में कुछ ताजगी और ठंडक थी। होरी ने दो-तीन साँसें जोर से लीं। उसके जी में आया, कुछ देर यहीं बैठ जाए। दिन-भर तो लू-लपट में मरना है ही। कई किसान इस गड्ढे का पट्टा लिखाने को तैयार थे। अच्छी रकम देते थे; पर ईश्वर भला करे रायसाहब का कि उन्होंने साफ कह दिया, यह जमीन जानवरों की चराई के लिए छोड़ दी गई है और किसी दाम पर भी न उठाई जायगी। कोई स्वार्थी जमींदार होता, तो कहता गाएँ जायँ भाड़ में, हमें रुपए मिलते हैं, क्यों छोड़ें; पर रायसाहब अभी तक पुरानी मर्यादा निभाते आते हैं। जो मालिक प्रजा को न पाले, वह भी कोई आदमी है?


सहसा उसने देखा, भोला अपनी गाय लिए इसी तरफ चला आ रहा है। भोला इसी गाँव से मिले हुए पुरवे का ग्वाला था और दूध-मक्खन का व्यवसाय करता था। अच्छा दाम मिल जाने पर कभी-कभी किसानों के हाथ गाएँ बेच भी देता था। होरी का मन उन गायों को देख कर ललचा गया। अगर भोला वह आगे वाली गाय उसे दे तो क्या कहना! रुपए आगे-पीछे देता रहेगा। वह जानता था, घर में रुपए नहीं हैं। अभी तक लगान नहीं चुकाया जा सका; बिसेसर साह का देना भी बाकी है, जिस पर आने रुपए का सूद चढ़ रहा है, लेकिन दरिद्रता में जो एक प्रकार की अदूरदर्शिता होती है, वह निर्लज्जता जो तकाजे, गाली और मार से भी भयभीत नहीं होती, उसने उसे प्रोत्साहित किया। बरसों से जो साध मन को आंदोलित कर रही थी, उसने उसे विचलित कर दिया। भोला के समीप जा कर बोला - राम-राम भोला भाई, कहो क्या रंग-ढंग हैं? सुना अबकी मेले से नई गाएँ लाए हो?


भोला ने रूखाई से जवाब दिया। होरी के मन की बात उसने ताड़ ली थी - हाँ, दो बछिएँ और दो गाएँ लाया। पहलेवाली गाएँ सब सूख गई थी। बँधी पर दूध न पहुँचे तो गुजर कैसे हो?


होरी ने आगे वाली गाय के पुट्टे पर हाथ रख कर कहा - दुधार तो मालूम होती है। कितने में ली?


भोला ने शान जमाई - अबकी बाजार तेज रहा महतो, इसके अस्सी रुपए देने पड़े। आँखें निकल गईं। तीस-तीस रुपए तो दोनों कलोरों के दिए। तिस पर गाहक रुपए का आठ सेर दूध माँगता है।


'बड़ा भारी कलेजा है तुम लोगों का भाई, लेकिन फिर लाए भी तो वह माल कि यहाँ दस-पाँच गाँवों में तो किसी के पास निकलेगी नहीं।'


भोला पर नशा चढ़ने लगा। बोला - रायसाहब इसके सौ रुपए देते थे। दोनों कलोरों के पचास-पचास रुपए, लेकिन हमने न दिए। भगवान ने चाहा तो सौ रुपए इसी ब्यान में पीट लूँगा।


'इसमें क्या संदेह है भाई। मालिक क्या खा के लेंगे? नजराने में मिल जाय, तो भले ले लें। यह तुम्हीं लोगों का गुर्दा है कि अंजुली-भर रुपए तकदीर के भरोसे गिन देते हो। यही जी चाहता है कि इसके दरसन करता रहूँ। धन्य है तुम्हारा जीवन कि गऊओं की इतनी सेवा करते हो! हमें तो गाय का गोबर भी मयस्सर नहीं। गिरस्त के घर में एक गाय भी न हो, तो कितनी लज्जा की बात है। साल-के-साल बीत जाते हैं, गोरस के दरसन नहीं होते। घरवाली बार-बार कहती है, भोला भैया से क्यों नहीं कहते? मैं कह देता हूँ, कभी मिलेंगे तो कहूँगा। तुम्हारे सुभाव से बड़ी परसन रहती है। कहती है, ऐसा मर्द ही नहीं देखा कि जब बातें करेंगे, नीची आँखें करके कभी सिर नहीं उठाते।'


भोला पर जो नशा चढ़ रहा था, उसे इस भरपूर प्याले ने और गहरा कर दिया। बोला - आदमी वही है, जो दूसरों की बहू-बेटी को अपनी बहू-बेटी समझे। जो दुष्ट किसी मेहरिया की ओर ताके, उसे गोली मार देना चाहिए।


'यह तुमने लाख रुपए की बात कह दी भाई! बस सज्जन वही, जो दूसरों की आबरू समझे।'


'जिस तरह मर्द के मर जाने से औरत अनाथ हो जाती है, उसी तरह औरत के मर जाने से मर्द के हाथ-पाँव टूट जाते हैं। मेरा तो घर उजड़ गया महतो, कोई एक लोटा पानी देने वाला भी नहीं।'


गत वर्ष भोला की स्त्री लू लग जाने से मर गई थी। यह होरी जानता था, लेकिन पचास बरस का खंखड़ भोला भीतर से इतना स्निग्ध है, वह न जानता था। स्त्री की लालसा उसकी आँखों में सजल हो गई थी। होरी को आसन मिल गया। उसकी व्यावहारिक कृषक-बुद्धि सजग हो गई।


'पुरानी मसल झूठी थोड़े है - बिन घरनी घर भूत का डेरा। कहीं सगाई क्यों नहीं ठीक कर लेते?'


'ताक में हूँ महतो, पर कोई जल्दी फँसता नहीं। सौ-पचास खरच करने को भी तैयार हूँ। जैसी भगवान की इच्छा।'


'अब मैं भी फिराक में रहूँगा। भगवान चाहेंगे, तो जल्दी घर बस जायगा।'


'बस, यही समझ लो कि उबर जाऊँगा भैया! घर में खाने को भगवान का दिया बहुत है। चार पसेरी रोज दूध हो जाता है, लेकिन किस काम का?'


'मेरे ससुराल में एक मेहरिया है। तीन-चार साल हुए, उसका आदमी उसे छोड़ कर कलकत्ते चला गया। बेचारी पिसाई करके गुजारा कर रही है। बाल-बच्चा भी कोई नहीं। देखने-सुनने में अच्छी है। बस, लच्छमी समझ लो।'


भोला का सिकुड़ा हुआ चेहरा जैसे चिकना गया। आशा में कितनी सुधा है! बोला - अब तो तुम्हारा ही आसरा है महतो! छुट्टी हो, तो चलो एक दिन देख आएँ।


'मैं ठीक-ठाक करके तब तुमसे कहूँगा। बहुत उतावली करने से भी काम बिगड़ जाता है।'


'जब तुम्हारी इच्छा हो तब चलो। उतावली काहे की - इस कबरी पर मन ललचाया हो, तो ले लो।'


'यह गाय मेरे मान की नहीं है दादा। मैं तुम्हें नुकसान नहीं पहुँचाना चाहता। अपना धरम यह नहीं है कि मित्रों का गला दबाएँ। जैसे इतने दिन बीते हैं, वैसे और भी बीत जाएँगे।'


'तुम तो ऐसी बातें करते हो होरी, जैसे हम-तुम दो हैं। तुम गाय ले जाओ, दाम जो चाहे देना। जैसे मेरे घर रही, वैसे तुम्हारे घर रही। अस्सी रुपए में ली थी, तुम अस्सी रुपए ही देना देना। जाओ।'


'लेकिन मेरे पास नगद नहीं है दादा, समझ लो।'


'तो तुमसे नगद माँगता कौन है भाई?'


होरी की छाती गज-भर की हो गई। अस्सी रुपए में गाय महँगी न थी। ऐसा अच्छा डील-डौल, दोनों जून में छ:-सात सेर दूध, सीधी ऐसी कि बच्चा भी दुह ले। इसका तो एक-एक बाछा सौ-सौ का होगा। द्वार पर बँधेगी तो द्वार की सोभा बढ़ जायगी। उसे अभी कोई चार सौ रुपए देने थे; लेकिन उधार को वह एक तरह से मुफ्त समझता था। कहीं भोला की सगाई ठीक हो गई, तो साल-दो साल तो वह बोलेगा भी नहीं। सगाई न भी हुई, तो होरी का क्या बिगड़ता है! यही तो होगा, भोला बार-बार तगादा करने आएगा, बिगड़ेगा, गालियाँ देगा; लेकिन होरी को इसकी ज्यादा शर्म न थी। इस व्यवहार का वह आदी था। कृषक के जीवन का तो यह प्रसाद है। भोला के साथ वह छल कर रहा था और यह व्यापार उसकी मर्यादा के अनुकूल न था। अब भी लेन-देन में उसके लिए लिखा-पढ़ी होने और न होने में कोई अंतर न था। सूखे-बूड़े की विपदाएँ उसके मन को भीरु बनाए रहती थीं। ईश्वर का रुद्र रूप सदैव उसके सामने रहता था; पर यह छल उसकी नीति में छल न था। यह केवल स्वार्थ-सिद्धि थी और यह कोई बुरी बात न थी। इस तरह का छल तो वह दिन-रात करता रहता था। घर में दो-चार रुपए पड़े रहने पर भी महाजन के सामने कसमें खा जाता था कि एक पाई भी नहीं है। सन को कुछ गीला कर देना और रूई में कुछ बिनौले भर देना उसकी नीति में जायज था और यहाँ तो केवल स्वार्थ न था, थोड़ा-सा मनोरंजन भी था। बुड्ढों का बुढ़भस हास्यास्पद वस्तु है और ऐसे बुड्ढों से अगर कुछ ऐंठ भी लिया जाय, तो कोई दोष-पाप नहीं।


भोला ने गाय की पगहिया होरी के हाथ में देते हुए कहा - ले जाओ महतो, तुम भी क्या याद करोगे। ब्याते ही छ: सेर दूध लेना। चलो, मैं तुम्हारे घर तक पहुँचा दूँ। साइत तुम्हें अनजान समझ कर रास्ते में कुछ दिक करे। अब तुमसे सच कहता हूँ, मालिक नब्बे रुपए देते थे, पर उनके यहाँ गऊओें की क्या कदर। मुझसे ले कर किसी हाकिम-हुक्काम को दे देते। हाकिमों को गऊ की सेवा से मतलब? वह तो खून चूसना-भर जानते हैं। जब तक दूध देती, रखते, फिर किसी के हाथ बेच देते। किसके पल्ले पड़ती, कौन जाने। रूपया ही सब कुछ नहीं है भैया, कुछ अपना धरम भी तो है। तुम्हारे घर आराम से रहेगी तो। यह न होगा कि तुम आप खा कर सो रहो और गऊ भूखी खड़ी रहे। उसकी सेवा करोगे, प्यार करोगे, चुमकारोगे। गऊ हमें आसिरवाद देगी। तुमसे क्या कहूँ भैया, घर में चंगुल-भर भी भूसा नहीं रहा। रुपए सब बाजार में निकल गए। सोचा था, महाजन से कुछ ले कर भूसा ले लेंगे; लेकिन महाजन का पहला ही नहीं चुका। उसने इनकार कर दिया। इतने जानवरों को क्या खिलाएँ, यही चिंता मारे डालती है। चुटकी-चुटकी भर खिलाऊँ, तो मन-भर रोज का खरच है। भगवान ही पार लगाएँ तो लगे।


होरी ने सहानुभूति के स्वर में कहा - तुमने हमसे पहले क्यों नहीं कहा - हमने एक गाड़ी भूसा बेच दिया।


भोला ने माथा ठोक कर कहा - इसीलिए नहीं कहा - भैया कि सबसे अपना दु:ख क्यों रोऊँ; बाँटता कोई नहीं, हँसते सब हैं। जो गाएँ सूख गई हैं, उनका गम नहीं, पत्ती-सत्ती खिला कर जिला लूँगा; लेकिन अब यह तो रातिब बिना नहीं रह सकती। हो सके, तो दस-बीस रुपए भूसे के लिए दे दो।


किसान पक्का स्वार्थी होता है, इसमें संदेह नहीं। उसकी गाँठ से रिश्वत के पैसे बड़ी मुश्किल से निकलते हैं, भाव-ताव में भी वह चौकस होता है, ब्याज की एक-एक पाई छुड़ाने के लिए वह महाजन की घंटों चिरौरी करता है, जब तक पक्का विश्वास न हो जाय, वह किसी के फुसलाने में नहीं आता, लेकिन उसका संपूर्ण जीवन प्रकृति से स्थायी सहयोग है।‌ वृक्षों में फल लगते हैं, उन्हें जनता खाती है, खेती में अनाज होता है, वह संसार के काम आता है; गाय के थन में दूध होता है, वह खुद पीने नहीं जाती, दूसरे ही पीते हैं, मेघों से वर्षा होती है, उससे पृथ्वी तृप्त होती है। ऐसी संगति में कुत्सित स्वार्थ के लिए कहाँ स्थान? होरी किसान था और किसी के जलते हुए घर में हाथ सेंकना उसने सीखा ही न था।


भोला की संकट-कथा सुनते ही उसकी मनोवृत्ति बदल गई। पगहिया को भोला के हाथ में लौटाता हुआ बोला - रुपए तो दादा मेरे पास नहीं हैं। हाँ, थोड़ा-सा भूसा बचा है, वह तुम्हें दूँगा। चल कर उठवा लो। भूसे के लिए तुम गाय बेचोगे, और मैं लूँगा! मेरे हाथ न कट जाएँगे?


भोला ने आर्द्र कंठ से कहा - तुम्हारे बैल भूखों न मरेंगे। तुम्हारे पास भी ऐसा कौन-सा बहुत-सा भूसा रखा है।


'नहीं दादा, अबकी भूसा अच्छा हो गया था।'


'मैंने तुमसे नाहक भूसे की चर्चा की।'


'तुम न कहते और पीछे से मुझे मालूम होता, तो मुझे बड़ा रंज होता कि तुमने मुझे इतना गैर समझ लिया। अवसर पड़ने पर भाई की मदद भाई न करे, तो काम कैसे चले!'


'मुदा यह गाय तो लेते जाओ।'


'अभी नहीं दादा, फिर ले लूँगा।'


'तो भूसे के दाम दूध में कटवा लेना।'


होरी ने दु:खित स्वर में कहा - दाम-कौड़ी की इसमें कौन बात है दादा, मैं एक-दो जून तुम्हारे घर खा लूँ तो तुम मुझसे दाम माँगोगे?


'लेकिन तुम्हारे बैल भूखों मरेंगे कि नही?


'भगवान कोई-न-कोई सबील निकालेंगे ही। आसाढ़ सिर पर है। कड़वी बो लूँगा।'


'मगर यह गाय तुम्हारी हो गई। जिस दिन इच्छा हो, आ कर ले जाना।'


'किसी भाई का लिलाम पर चढ़ा हुआ बैल लेने में जो पाप है, वह इस समय तुम्हारी गाय लेने में है।'


होरी में बाल की खाल निकालने की शक्ति होती, तो वह खुशी से गाय ले कर घर की राह लेता। भोला जब नकद रुपए नहीं माँगता, तो स्पष्ट था कि वह भूसे के लिए गाय नहीं बेच रहा है, बल्कि इसका कुछ और आशय है; लेकिन जैसे पत्तों के खड़कने पर घोड़ा अकारण ही ठिठक जाता है और मारने पर भी आगे कदम नहीं उठाता, वही दशा होरी की थी। संकट की चीज लेना पाप है, यह बात जन्म-जन्मांतरों से उसकी आत्मा का अंश बन गई थी।


भोला ने गदगद कंठ से कहा - तो किसी को भेज दूँ भूसे के लिए?


होरी ने जवाब दिया - अभी मैं रायसाहब की ड्योढ़ी पर जा रहा हूँ। वहाँ से घड़ी-भर में लौटूँगा, तभी किसी को भेजना।


भोला की आँखों में आँसू भर आए। बोला - तुमने आज मुझे उबार लिया होरी भाई! मुझे अब मालूम हुआ कि मैं संसार में अकेला नहीं हूँ। मेरा भी कोई हितू है। एक क्षण के बाद उसने फिर कहा - उस बात को भूल न जाना।


होरी आगे बढ़ा, तो उसका चित्त प्रसन्न था। मन में एक विचित्र स्फूर्ति हो रही थी। क्या हुआ, दस-पाँच मन भूसा चला जायगा, बेचारे को संकट में पड़ कर अपनी गाय तो न बेचनी पड़ेगी। जब मेरे पास चारा हो जायगा तब गाय खोल लाऊँगा। भगवान करें, मुझे कोई मेहरिया मिल जाए। फिर तो कोई बात ही नहीं।


उसने पीछे फिर कर देखा। कबरी गाय पूँछ से मक्खियाँ उड़ाती, सिर हिलाती, मस्तानी, मंद-गति से झूमती चली जाती थी, जैसे बांदियों के बीच में कोई रानी हो। कैसा शुभ होगा वह दिन, जब यह कामधेनु उसके द्वार पर बँधेगी!


तैयारी / फिल्म 'लाल सिंह चड्‌ढा' के लिए आमिर खान सीख रहे हैं खुद से पगड़ी कैसे बांधी जाती है..

आमिर खान के बारे में यह प्रसिद्ध है कि वे रोल के लिए पूरी तैयारी खुद ही करते हैं। यही बात उनकी अगली फिल्म 'लाल सिंह चड्‌ढा' पर भी लागू हो रही है। फॉरैस्ट गम्प की हिन्दी रीमेक में अपने सरदार वाले रोल के लिए आमिर खुद ही पगड़ी बांधना सीख रहे हैं। 



एंटरटेनमेंट वेबसाइट कोईमोई की खबर के अनुसार लाल सिंह चड्‌ढा की कहानी को अतुल कुलकर्णी ने लिखा है। जबकि अद्वैत चंदन फिल्म को डायरेक्ट कर रहे हैं। फिल्म में आमिर खान के साथ करीना कपूर भी नजर आएंगी। इसकी शूटिंग चंडीगढ़ में चल रही है। लाल सिंह चड्‌ढा अगले साल क्रिसमस वीक पर रिलीज होगी। 

विजय भी होंगे आमिर के साथ'लाल सिंह चड्‌ढा' में साउथ के स्टार विजय सेतुपति की एंट्री भी हुई है। विजय ने कहा - वह तमिल-तेलुगु के अलावा दूसरी इंडस्ट्री की फिल्मों में काम करने से डरते हैं। विजय का कहना है भाषा कोई बड़ी बाधा नहीं है वह सीखी जा सकती है लेकिन उस क्षेत्र की संस्कृति को समझना ज्यादा महत्वपूर्ण है। क्योंकि सिर्फ कल्चर के जरिए ही हम दर्शकों से जुड़ सकते हैं। विजय के अलावा फिल्म में 'थ्री इडियट्स' में करीना-आमिर के साथ नजर आईं मोना सिंह भी होंगी। 


बात ओरिजनल फिल्म कीफॉरेस्ट गंप 1994 में रिलीज हुई थी और अब फिल्म के एक्टर टॉम हैंक्स 63 साल के हो चुके हैं। फिल्म ने ऑस्कर के एक दर्जन नॉमिनेशन पाए थे और छह ऑस्कर अवॉर्ड्स जीते थे। टॉम हैंक्स को इसके लिए लगातार दूसरा बेस्ट एक्टर का ऑस्कर अवॉर्ड मिला था। फिल्म लेखक विन्सटन ग्रूम के 1986 में आए नॉवेल पर बेस्ड थी।



शीतसत्र  / नान घोटाले को लेकर मुख्यमंत्री भूपेश बघेल और रमन सिंह में तीखी नोक-झोंक

सरकार पर गलत जानकारी देने का आरोप




रायपुर. छत्तीसगढ़ विधानसभा में चल रहे शीतसत्र के छठवें और अंतिम दिन नान घोटाले को लेकर मुख्यमंत्री भूपेश बघेल और पूर्व मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह में तीखी नोक-झोंक हुई। पूर्व सीएम ने नान घोटाले में पीआईएल लगाने वाले वकीलों की जानकारी मांगी और सरकार पर सदन में गलत जानकारी देने का आरोप लगाया। इस पर मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने कहा कि पिछली सरकार को 15 साल का हिसाब देना चाहिए। घोटाले की जांच रोकने के लिए कोर्ट जाते हैं। इसके बाद दोनों ओर से बहस तेज हो गई। 


रमन बोले- हरीश साल्वे, रविंद्र श्रीवास्तव कभी हाईकोर्ट नहीं अाए, सीएम ने कहा- पिछली सरकार में कितने आए सबका हिसाब मेरे पास



  • दरअसल, विधानसभा में सोमवार का दिन काफी हंगामेदार रहा। सदन में पूर्व मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह ने नान घोटाले में पीआईएल लगाने वाले वकीलों की जानकारी मांगी। साथ ही उन्होंने निजी वकीलों पर शासन की ओर से किए गए खर्चों और उन्हें शासकीय विमान उपलब्ध कराने की भी जानकारी मांगी। इस पर मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने बताया कि अधिवक्ता दयन कृष्णन को था 81 लाख रुपए का भुगतान किया गया। इसके साथ ही वकील हरीश साल्वे और रविंद्र श्रीवास्तव की सेवाएं ली गईं। 


     सीएम मैडम, सीएम सर कौन हैं... आज तक जवाब नहीं आया



  • इस पर पूर्व सीएम ने कहा कि हरीश साल्वे कभी बिलासपुर हाईकोर्ट आए ही नहीं। रविंद्र श्रीवास्तव भी कभी नहीं पहुंचे। उन्होंने सरकार पर विधानसभा में गलत जानकारी देने का आरोप लगाया। इस पर दोनों ओर से बहस शुरू हो गई। सीएम बघेल ने रमन सिंह पर तंज कसते हुए कहा कि सीएम मैडम, सीएम सर कौन है, लोग जानना चाहते हैं। उसका जवाब तो आज तक नहीं आया। कहा कि रमन सिंह की सरकार में भी बाहर के वकील को बुलाया गया था। किसे कब और कितना भुगतान किया गया सबका हिसाब मेरे पास है। 


 



  • मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने कहा कि पूर्व सरकार को अपने 15 सालों के खर्च का हिसाब देना चाहिए। उन्होंने कहा कि नान घोटाले की जांच रोकने नेता प्रतिपक्ष पीआईएल लगाते हैं। मुख्यमंत्री बघेल की इस टिप्पणी पर सदन में एक बार फिर जोरदार नोंकझोंक हुई। पक्ष-विपक्ष के सदस्य खड़े होकर नारेबाजी करने लगे। वहीं विधायक मोहन मरकाम ने पूछा नान घोटाले में कौन-कौन लोग शामिल हैं और उनपर कार्रवाई होगी क्या। जवाब में सीएम बघेल ने कहा कि कार्रवाई के लिए ही तो एसआईटी का गठन किया गया है। 


शराबबंदी को लेकर विपक्ष का हंगामा, 10 विधायक निलंबित



  • विधानसभा में शराबबंदी को लेकर मामला उठाया गया। विपक्ष स्थगन प्रस्ताव पर चर्चा को लेकर अड़ा हुआ था। शराबबंदी को लेकर विधायक अजय चंद्राकर, धर्मजीत सिंह और डॉ. रमन सिंह ने मामला उठाया। इसके बाद सदन में नारेबाजी शुरू हो गई और विधायक आसंदी तक आ गए। इस पर भाजपा, बसपा और छत्तीसगढ़ जनता कांग्रेस के 10 विधायक स्वत: ही निलंबित हो गए। हालांकि बाद में उनका निलंबन समाप्त कर दिया गया। 



प्रज्ञा ठाकुर को जिंदा जलाने की धमकी देने वाले कांग्रेस विधायक ने लिखा पत्र

विधायक ने कहा- आप मालेगांव से मशहूर



भोपालभाजपा सांसद प्रज्ञा ठाकुर और ब्वायरा से कांग्रेस विधायक बीच चली आ रही जुबानी जंग खत्म नहीं हो रही। प्रज्ञा ठाकुर को जिंदा जला देने की धमकी देने वाले विधायक  गोर्वधन दांगी ने अब प्रज्ञा को तीन पेज का पत्र लिख गांधी विचारधार अपनाने की सलाह दी है। विधायक ने कहा है कि अगर आप ऐसा करती हैं तो आपकी मनोवृत्ति सुधरेगी और हम आपका स्वागत करेंगे।


दांगी ने लिखा- एक बार नहीं कई बार आपने गोडसे को देशभक्त कहा



  • दांगी ने पत्र में प्रज्ञा ठाकुर को लिखा- "आपने एक बार नहीं कई बार गोडसे को देशभक्त कहा। इसमें आपकी गलती नहीं। आप मालेगांव ब्लास्ट मामले से मशहूर हैं। सांप्रदायिकता आपके जेहन में है।" 

  • "इसलिए हिंसा का प्रतिरूप नाथूराम गोडसे रह-रह कर आपकी जुबान पर आता है। यह कहावत वैसे ही नहीं बनी कि 'मुंह में राम बगल में छुरी' आपके दिल और दिमाग में गांधी है या नहीं पर आपका गोडसे चिंतन जरूर आपके मुंह से बार-बार बाहर आ जाता है।" 

  • "आप गोडसे छोड़ गांधी की विचारधारा स्वीकार करना चाहती हैं, तो मेरे जिले में राजगढ़ के मेरे शहर ब्यावरा आइए। हम शहरवासी गांधी जी का भजन ईश्वर अल्लाह, तेरे नाम, सबको सनमति दे भगवान गाकर आपका स्वागत करेंगे। फिर आप और हम मिलकर भजन गाएंगे।"


प्रज्ञा ठाकुर ने कहा था- 4 बजे आ रही हूं ब्वावरा


संसद में नाथूराम गोडसे के समर्थन में बयान देने पर प्रज्ञा ठाकुर का ब्यावरा में गुरुवार को कांग्रेस नेताओं ने पुतला दहन किया था। इस दौरान दांगी ने कहा था कि अगर प्रज्ञा यहां आईं तो उन्हें जिंदा जला देंगे। इसके बाद प्रज्ञा ठाकुर ने ट्वीट कर पलटवार किया था। उन्होंने कहा था कि वे 8 दिसंबर की शाम 4 बजे ब्यावरा आ रही हैं, जला दीजिएगा। प्रज्ञा ने ट्वीट में कांग्रेस की संस्कृति और 1984 के सिख नरसंहार का भी जिक्र किया था। हालांकि दांगी ने शुक्रवार को बयान पर खेद व्यक्त करते हुए माफी मांग ली थी।


सीबीएसई 10वीं-12वीं की परीक्षा के तरीके में बदलाव करेगा

रटने की जगह चिंतन और तर्क को बढ़ावा मिलेगा



नई दिल्ली. केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने सोमवार को कहा कि सेंट्रल बोर्ड ऑफ सेकेंडरी एजुकेशन (सीबीएसई) 10वीं और 12वीं की परीक्षा के तरीके में बदलाव करेगा। मानव संसाधन मंत्री रमेश पोखरियाल निशंक ने कहा कि बोर्ड यह कदम रटने की परंपरा को खत्म करने और छात्रों में सोच और तर्क क्षमता को बढ़ाने के लिए यह कदम उठाएगा। यह बदलाव 10वीं और 12वीं की 2020 में होने वाली परीक्षा के दौरान किए जाएंगे।


निशंक ने लोकसभा में सांसद केशारी देवी और चिराग पासवान के सवालों के जवाब में सीबीएसई बोर्ड के बदलाव के बारे में जानकारी दी। देशभर में सीबीएसई के कक्षा 10वीं और 12वीं के छात्रों की कुल संख्या करीब 32 लाख है।


बिना प्रायोगिक परीक्षा वाले विषयों का आंतरिक मूल्यांकन होगा



निशंक ने बताया- प्रश्नों की संख्या घटाने, ऑब्जेक्टिव प्रश्नों की संख्या बढ़ाने, आंतरिक विकल्प के साथ-साथ हर विषय के आंतरिक मूल्यांकन जैसे बदलावों पर बोर्ड जोर देगा। सभी सवालों के 33% हिस्से में छात्रों को आंतरिक विकल्प दिया जाएगा। एक नंबर वाले ऑब्जेक्टिव प्रश्नों की संख्या प्रश्न पत्र में 25% रहेगी। हर विषय के आंतरिक मूल्यांकन के अंक 20% रहेंगे। यह वो विषय होंगे, जिनमें प्रायोगिक परीक्षा नहीं होती।



शाहरुख खान कॉमिक एक्शन थ्रिलर फिल्म की अगले साल शुरू करेंगे शूटिंग?


शाहरुख खान आखिरी बार फिल्म 'जीरो' में नजर आए थे। शाहरुख जल्द ही अपने नए प्रोजेक्ट की शूटिंग शुरू करने वाले हैं।


 







बॉलीवुड के सुपरस्टार शाहरुख खान आखिरी बार फिल्म जीरो में नजर आए थे। जीरो में शाहरुख खान के साथ अनुष्का शर्मा और कटरीना कैफ अहम भूमिका निभाती नजर आईं थी। जीरो के बाद शाहरुख ने कोई भी फिल्म साइन नहीं की है। अपने 54वें जन्मदिन पर शाहरुख खाने ने अनाउंसमेंट की थी कि वह कुछ स्क्रिप्ट पढ़ रहे हैं और जल्द ही अपने नए प्रोजेक्ट के बारे में बताएंगे। अब रिपोर्ट के मुताबिक शाहरुख कॉमिक एक्शन थ्रिलर फिल्म में नजर आने वाले हैं।


मुंबई मिरर की रिपोर्ट के मुताबिक शाहरुख खान बिग बजट कॉमिक एक्शन थ्रिलर फिल्म में नजर आने वाले हैं। इस फिल्म को राज निदिमोरु और कृष्ण डीके डायरेक्ट करेंगे। रिपोर्ट के मुताबिक फिल्म की शूटिंग अगले साल शुरू होगी। 


 


रिपोर्ट के मुताबिक फिल्म को शाहरुख खान प्रोड्यूस कर रहे हैं। फिल्म की शूटिंग इंडिया और विदेश में होगी। एक्शन सीक्वेंस के लिए इंटरनेशनल क्रू को बुलाया जाएगा जो फिल्म में एक्शन डिजाइन करेंगे। फिलहाल राज और डीके स्क्रिप्ट को खत्म करके लोकेशन फाइनल करेंगे।


फिल्म का टाइटल अभी तक डिसाइड नहीं हुआ है। यह फिल्म 2021 में रिलीज होगी।





ऋतिक रोशन ने दिखाया अपना 'दिल', फैन बोले - बहुत बड़ा है भाई...मिले 10 लाख ये ज्यादा Hearts


Hrithik Roshan के दिल की इस तस्वीर को देख फैन्स ने कई कमेंट्स किए. किसी ने लिखा 'बहुत बड़ा है भाई' तो किसी ने कमेंट किया 'हेल्दी हार्ट'. इतना ही नहीं सबसे ज्यादा कमेंट्स में फैन्स ने भी हार्ट इमोजी ही दि







बॉलीवुड एक्टर ऋतिक रोशन (Hrithik Roshan) ने अपने इंस्टाग्राम हैंडल पर एक दिल की तस्वीर शेयर की, जिसे उन्होंने अपने हार्ट की तस्वीर बताई. पोस्ट में उन्होंने लिखा 'ये है मेरे दिल की तस्वीर'. इस तस्वीर को अभी तक 10 लाख से ज्यादा लाइक्स मिल चुके हैं. आप भी देखिए बॉलीवुड एक्टर ऋतिक रोशन के दिल की तस्वीर.


ऋतिक रोशन ने अपने दिn की तस्वीर शेयर करते हुए लिखा ''मेरे दिल का शेप- वास्तव में! हम सब कितने कमजोर हैं. काश, हमें हर समय दूसरों से प्यार पाने की कोशिश में आधे से ज्यादा जिंदगी को अनजाने में खर्च करने की ज़रूरत नहीं होती. इतनी आसानी से हम ये भूल जाते हैं कि हम सब एक जैसे हैं. मेड ऑफ लव.''



ऋतिक रोशन के दिल की इस तस्वीर को देख फैन्स ने कई कमेंट्स किए. किसी ने लिखा 'बहुत बड़ा है भाई' तो किसी ने कमेंट किया 'हेल्दी हार्ट'. इतना ही नहीं सबसे ज्यादा कमेंट्स में फैन्स ने भी हार्ट इमोजी ही दिया.
 






लेकिन हेल्दी हार्ट के लिए आप क्या टिप्स कर सकते हैं फॉलो, जानिए यहां...


1. स्‍मोकिंग ना करें.
2. रोज़ाना एक्सरसाइज़ करें.
3. नमक की  मात्रा सीमित करें.
4. डार्क चॉकलेट का सेवन करें.
5. ओवरइटिंग से बचें.
6. ब्रेकफास्ट जरूर करें.
7. हर दिन एक फल जरूर खाएं.
8. लो फैट प्रोटीन खाएं जैसे अंडे, सोयाबीन, सैलमॉन मछली, लो फैट मिल्क.
9. छोटे कौर में खाना खाएं और आराम से खाएं.
10. स्ट्रेस ना लें और पूरी नींद लें.


 





हैदराबाद रेप केस: आरोपी चेन्ना की मां की बात सुनकर राहत भी मिलती है, डर भी लगता है







सफेद शर्ट में शिवा, पीली टी-शर्ट में आरिफ, नीली शर्ट में नवीन और नारंगी शर्ट में चेन्ना, जिन्होंने डॉक्टर का

गैंगरेप किया और उन्हें जलाकर मार दिया.



 


हैदराबाद में 28 नवंबर को एक लड़की की हत्या हुई. पुलिस को शक है कि हत्या से पहले उसके साथ रेप हुआ था.


27 नवंबर की रात करीब 9 बजकर 22 मिनट पर लड़की ने अपनी छोटी बहन को फोन किया था. उन्होंने बताया कि स्कूटी का टायर पंक्चर हो गया है. दो अजनबियों ने उसे मदद भी ऑफर की थी. लेकिन टायर रिपेयर नहीं हो सका. डॉक्टर ने बहन को बताया था कि वो एक ऐसी जगह पर है, जहां कई सारे ट्रक ड्राइवर्स हैं और वो डरी हुईं हैं. उनकी बहन ने उससे कहा कि वो तुरंत ही पास के टोल प्लाजा पर पहुंच जाए, वहां वो सुरक्षित रहेंगी. इसके बाद उसकी बात किसी से नहीं हुई. 28 नवंबर की सुबह उसकी जली हुई लाश मिली.


बीते दिन से चल रही इस खबर में कुछ डिटेल्स सामने आए हैं.


घटना से पहले आरोपी को पुलिस ने पकड़ा था 


घटना के 48 घंटे पहले 25 नवंबर को ट्रैफिक पुलिस ने मुख्य आरोपी को पकड़ा था. जब पुलिस ने ट्रक सीज़ करने की कोशिश की, तो आरोपी आरिफ ने अपना दिमाग लगाते हुए ट्रक का सेल्फ स्टार्ट केबल निकाल दिया. इससे ट्रक स्टार्ट नहीं हुआ. और जब पुलिस ट्रक को छोड़कर आगे बढ़ी, तो आरिफ ट्रक लेकर वहां से भाग गया. आरिफ के साथ पुलिस ने जोल्लू नवीन, चेन्नकेशवुलु उर्फ चेन्ना और जोल्लू शिवा को गिरफ्तार किया था.


24 नवंबर को आरिफ और जोल्लू शिवा, जो ट्रक सफाई का काम करता था, दोनों ट्रक में ईंट भरकर हैदराबाद में डिलीवरी करने के लिए निकले थे. इसके बाद आरिफ ने अपने दूसरे साथी नवीन और चेन्ना को फोन किया. उन्हें तेलंगाना के गुडीगंडला गांव में मिलने बुलाया. क्योंकि वो लोग वहां से स्टील का कुछ सामान अवैध तरीके से हैदराबाद ले जाने वाले थे. दोनों साथी बताई गई जगह पर पहुंचे. इसके बाद स्टील लोड किया गया. और फिर चेन्ना अपने घर चला गया. और बाकी के तीन साथी हैदराबाद चले गए.


रीजनल ट्रांस्पोर्ट अथॉरिटी और विजिलेंस एंड एनफोर्स्मेंट डिपार्टमेंट की टीम ने चेकिंग के दौरान इनका ट्रक महबूबनगर (तेलंगाना का शहर) के पास रोका. टाइम्स ऑफ इंडिया ने जब मोटर व्हीकल्स इंस्पेक्टर चिरंजीवी से बातचीत की, तो उन्होंने बताया-


25 नवंबर को सुबह 4 बजे की बात है. ट्रक ड्राइवर के पास लाइसेंस नहीं था. फिर टीम ने ट्रक जब्त करने का फैसला किया. पर आरिफ ने चालाकी की. और सेल्फ स्टार्ट केबल निकाल दिया, जिससे ट्रक स्टार्ट न हो. इसके बाद हम अपना काम करने के लिए दूसरी लोकेशन पर चले गए. जब हम लौटे तो आरोपी ट्रक के साथ फरार हो चुका था.


रिपोर्ट के मुताबिक, आरोपी महबूबनगर से पास के ही एक पेट्रोल पंप गए. वहां ट्रक पार्क किया. फिर चेन्ना को घर से बुलाया गया. वो बाइक से वहां आया और फिर उसने ट्रक चलाना शुरू किया. और वहीं नवीन ने उसकी बाइक ले ली. सभी रैकाल टोल प्लाजा के पास पहुंचे, जहां उन्होंने अवैध तरीके से चार हजार रुपये में स्टील का सामान बेच दिया.


गैंगरेप के पहले खूब शराब पी रखी थी


पुलिस के मुताबिक, चारों आरोपी 26 नवंबर की रात 9 बजे शमशाबाद पहुंचे. वहां सड़क के किनारे ट्रक खड़ा किया और उसी के अंदर सो गए. फिर 27 नवंबर को सुबह 9 बजे पुलिस आई और सड़क से ट्रक हटाने के लिए कहा. उन चारों ने ट्रक टोंडपल्ली ORR टोल प्लाजा के पास ले जाकर खड़ा कर दिया. वहां उन्होंने शराब पी. इसी दौरान उन्होंने देखा कि एक लड़की है, जो अपनी स्कूटी ट्रक के पास खड़ी कर रही है. इसके बाद उन चारों ने उसे टारगेट करने का प्लान बनाया. रिमांड रिपोर्ट के मुताबिक, आरोपियों ने डॉक्टर का यौन शोषण किया. इस दौरान डॉक्टर बिल्कुल भी अपने होश में नहीं थीं. जब होश में आई, तो आरिफ ने उसे मार दिया.


रेप के बाद हत्या की और बॉडी फेंक दी


हत्या के बाद आरोपियों ने पीड़िता की बॉडी को एक चादर में लपेटा.  फिर उसे चट्टान पल्ली के आशियाना होटल के पास फेंक दिया. इसके बाद उन्होंने लाश को आग लगाई और फिर विक्टिम के दोनों सिम कार्ड तोड़कर नष्ट कर दिए. वो सभी आरोपी वहां से चले गए. इसके बाद विक्टिम की स्कूटी कोठूर (तेलंगाना का गांव) में छोड़ दी. और ट्रक को 28 नवंबर की सुबह आरामगढ़ पहुंचा दिया. फिर आरिफ ने बाकी के तीन आरोपी के जाने के बाद ट्रक को ऑटोनगर (आंध्र-प्रदेश के विजयवाड़ा में है) में खड़ा कर दिया और वहां से घर चला गया.



पहले मकैनिक और फिर सीसीटीवी से आरोपी का पता चला


पुलिस को डॉक्टर की जली हुई बॉडी मिली. और विक्टिम की बहन ने पुलिस को बताया था कि उनकी स्कूटी खराब हो गई थी. मदद करने के लिए दो लोग आए थे. इसके बाद पुलिस ने आसपास के सभी टायर मकैनिकों को खोजना शुरू किया. इसी दौरान पुलिस को एक मकैनिक मिला, जिसने बताया कि लाल रंग की स्कूटी में कोई हवा भरवाने के लिए आया था. एनबीटी के मुताबिक, पुलिस ने घटनास्थल के आसपास के सीसीटीवी फुटेज खंगाले. उन्हें दो आरोपी दिखाई दिए, जिनके पास वो स्कूटी थी. फिर वहीं दूसरे फुटेज में उन्हें एक ट्रक भी दिखाई दिया, पर उसका रजिस्ट्रेशन नंबर साफ नहीं था. फिर पुलिस ने फुटेज की टाइमिंग पीछे की और फिर देखना शुरू किया, तो उन्होंने पाया कि ट्रक एक-दो घंटे से नहीं, बल्कि 6-7 घंटे से वहीं सड़क के किनारे खड़ा था. इसमें ट्रक का रजिस्ट्रेशन नंबर भी दिखाई दिया. उससे ट्रक के मालिक का नाम पता चला. पुलिस ने ट्रक के मालिक श्रीनिवास रेड्डी को कॉल किया. फिर उनसे सीसीटीवी फुटेज में दिख रहे आदमियों को पहचानने के लिए कहा. पर श्रीनिवास पहचान नहीं सके. लेकिन उन्होंने इतना जरूर बताया कि ये ट्रक आरिफ के पास था.


डॉक्टर को जलाने के लिए पेट्रोल पंप से फ्यूल लिया था


वहीं, पुलिस की दूसरी टीम भी केस की जांच में जुटी थी. उन्होंने पेट्रोल पंप के सीसीटीवी फुटेज को खंगालना शुरू किया. क्योंकि डॉक्टर को जलाने के लिए पेट्रोल पंप से ही पेट्रोल या डीजल लाया गया था. पुलिस को फुटेज में आरोपी नजर आए, जो बोतल में फ्यूल ले रहे थे. और ये वही थे, जो टायर मकैनिक के पास भी गए थे. पुलिस के मुताबिक, आरोपियों ने शाम 5 बजे से ही शराब पीनी शुरू कर दी थी. और रात के 9:30 बजे तक वो शराब पी ही रहे थे. फिर पुलिस ने मोबाइल फोन टावर की लोकेशन और ट्रक मालिक से मिली जानकारी के आधार पर आरिफ और उसके तीन साथियों को गिरफ्तार किया.


आरोपी की मां ने कहा 'सज़ा दो'


वेटनरी डॉक्टर के मामले में मुख्य आरोपी आरिफ की मां ने मीडिया से बात की थी. मां के मुताबिक, उनके बेटे ने घटना के बाद आकर उन्हें बताया था कि उसकी गाड़ी से किसी लड़की का एक्सीडेंट हो गया और इससे उसकी मौत हो गई. आरिफ के पापा हुसैन का कहना है कि उन्हें आरिफ के अपराध के बारे में कोई जानकारी नहीं थी. आरिफ जिस सज़ा के लायक है, उसे वो सज़ा मिलनी चाहिए. मूल बी ने ये भी बताया था कि बाकी तीन आरोपी उनके घर आते-जाते रहते थे. और अब चेन्ना की मां का भी बयान आया है. उनका कहना है कि अगर उनके बेटे ने गैंगरेप, मर्डर और डॉक्टर को जलाया है, तो उनके बेटे को भी वैसे ही जला देना चाहिए.






हैदराबाद गैंगरेप पीड़िता के पिता-बहन और मां ने सुनाई उस रात की आपबीती





हैदराबाद कांड के बाद आजतक की टीम पीड़िता के घर गई और उसने पीड़िता के माता-पिता और इकलौती बहन से बात की. मां ने कहा कि उनकी बेटी को जिस तरह से जलाया गया वैसे ही उन दोषियों को भी जलाया जाए. इस मामले पर जल्द से जल्द कार्रवाई हो.









  • पिता- अपराधी हैं और उन्हें जल्द से जल्द सजा मिलनी चाहिए

  • पीड़िता की मां बोली- दोषियों को भी उसी तरह जला दिया जाए

  • पीड़िता की बहन- पुलिस का पूरे मामले में रवैया बेहद ढीला

  • बहन ने बताया- घटनास्थल उनके घर से महज 2 किलोमीटर दूर


हैदराबाद में एक पशु चिकित्सक के साथ रेप और मर्डर की घटना के बाद जहां एक ओर पूरे देश में रोष है तो वहीं संसद में इस मामले की गूंज सुनाई दे रही है. पशु चिकित्सक के साथ हुई बर्बरता के बाद आजतक ने पीड़िता के परिजनों से बात की. पीड़िता के पिता का कहना है कि अपराध करने वालों की उम्र बेहद कम है, लेकिन उन्होंने बड़ा काम कर दिया. वे अपराधी हैं और उन्हें जल्द से जल्द सजा मिलनी चाहिए. पीड़िता की मां का कहना है कि बेटी को जिस तरह से जलाया गया उसी तरह अपराधियों को भी जलाया जाए.


हैदराबाद कांड के बाद आजतक की टीम पीड़िता के घर गई और उसने पीड़िता के माता-पिता और इकलौती बहन से बात की. मां ने कहा कि उनकी बेटी को जिस तरह से जलाया गया वैसे ही उन दोषियों को भी जलाया जाए. इस मामले पर जल्द से जल्द कार्रवाई हो.


 


पुलिस सीसीटीवी फुटेज देखती रही


पीड़िता के पिता का कहना है कि जिस वक्त उनकी बेटी का फोन आया था उस वक्त वह घर पर नहीं थे. वो कोल्हापुर में थे. हालांकि उन्होंने आरोप लगाया कि पुलिस का पूरे मामले में रवैया बेहद ढीला था. पुलिस शुरुआत में स्पॉट पर नहीं गई और सिर्फ सीसीटीवी कैमरा देखती रही. हालांकि सीसीटीवी फुटेज में पीड़िता नहीं दिखी. यहां तक की पुलिस ने उनकी ही बेटी पर सवाल खड़े कर दिए कि वह कहीं चली गई.





 

 

पीड़िता के पिता कहना है कि दोषियों को जल्द से जल्द सजा मिलनी चाहिए. पहले निर्भया के आरोपियों को छोड़ दिया, और अब यह कांड हो गया. दोषियों को कड़ी सजा दी जानी चाहिए.




पीड़िता की बहन का कहना है कि वह इस वारदात के बाद से घर नहीं निकली है. पुलिस की कोई मदद नहीं मिली. अगर समय रहते उसे मदद मिलती तो वह जिंदा बच जाती. बहन की मांग है कि दोषियों को जल्द से जल्द सजा मिले.


घटनास्थल घर से महज 2 किलोमीटर दूर


पीड़िता की बहन ने आजतक से बताया कि जिस जगह घटना हुई वो उनके घर से महज 2 किलोमीटर ही दूर है. बहन की जब कॉल आई तो सिर्फ 6 मिनट ही बात हुई. उन्होंने बताया कि उसके फोन में रिकॉर्डिंग की सुविधा है और बहन के साथ उसकी आखिरी कॉल रिकॉर्ड हो गया जिसमें उसने कहा था कि डर लग रहा है.




बहन ने बताया कि वह उससे महज डेढ़ साल ही बड़ी थी, लेकिन वह बेहद ख्याल रखती थी. यहां तक कि वह खाना भी पैक करती थी. कई बार वह उसे खाना भी खिलाती थी. वह सबकी मदद करती थी.


उसने अपने सपने पूरे किएः पिता


पिता ने बताया कि वो बहुत होनहार लड़की थी. उसने अपने सारे सपने पूरे कर लिए थे. उसने रोजाना 14-14 घंटे पढ़ाई की. उसने 5 साल डॉक्टरी की पढ़ाई की. उसने सर्विस कमीशन की परीक्षा पास और 3 साल नौकरी की.


पिता ने अपनी बेटी के बारे में बताया कि वह अब उसकी शादी की तैयारी में थे और 2-3 महीने में उसकी शादी करने की योजना थी. साथ ही वह पीजी करने की तैयारी में जुटी थी, लेकिन वह शादी के बाद पीजी करने वाली थी. वो जो चाहती थी हमने उसे पूरा करने में मदद की. बेटी की चाहत पूरा करना हमारा फर्ज होता है.


लड़कों को भी संस्कार दिए जाएंः पिता


साथ ही उन्होंने कहा कि लड़कों को भी संस्कार दिए जाने की जरुरूत. घर से संस्कार दिए जाने से इस पर इस तरह की घटनाओं पर रोक लगेगी. साथ ही उन्होंने लड़कियों में भी जागरुकता फैलाने की बात कही.


उन्होंने कहा कि बच्चियों में जागरुकता फैलाने की जरूरत है. पुलिस को भी बच्चियों को इस संबंध में जागरुकता दिया जाना चाहिए. पुलिस जागरुकता को लेकर कार्यक्रम बनाए और नंबर डायल करने को बारे में बताए. नंबर डायल करने को लेकर जागरुकता होनी चाहिए.


पीड़िता ने पिता ने 100 नंबर डायल की आलोचना करते हुए कहा कि इसमें काफी समय लगता है. फोन करने पर कहा जाता है कि 1 नंबर डायल करो. 2 नंबर डायल करो. इसमें काफी समय लग जाता है. इस प्रक्रिया में काफी सुधार लाया जाना चाहिए.


पिता ने बताया कि आखिरी कॉल के दौरान उनकी बेटी ने कहा था कि फल काटकर रखना. उसे फल पसंद था.



क्रिकेट

 भारत का गेंदबाजी आक्रमण शानदार, लेकिन स्पिनर्स ऑस्ट्रेलिया में संघर्ष करते हैं : रिकी पॉन्टिंग





  • पूर्व ऑस्ट्रेलियाई कप्तान रिकी पॉन्टिंग ने भारतीय तेज गेंदबाजों की तारीफ की

  • पॉन्टिंग ने कहा- ऑस्ट्रेलिया में अश्विन, जडेजा से बेहतर है नाथन लॉयन का रिकॉर्ड 

  • लियोन ने घर में 4 बार भारत के खिलाफ 5 विकेट लिए, अश्विन एक बार भी ऐसा नहीं कर पाए


 

ऑस्ट्रेलिया के पूर्व कप्तान रिकी पॉन्टिंग ने भारत के तेज गेंदबाजों की तारीफ की। उन्होंने कहा कि भारत का गेंदबाजी आक्रमण शानदार, लेकिन स्पिनर्स ऑस्ट्रेलिया में संघर्ष करते हैं। उन्होंने मंगलवार को ऑस्ट्रेलिया की एक क्रिकेट वेबसाइट से यह बात कही। उन्होंने कहा कि ऑस्ट्रेलियाई स्पिनर नाथन लियोन का अपने घर में प्रदर्शन रविचंद्रन अश्विन और रविंद्र जडेजा से ज्यादा अच्छा है।


पॉन्टिंग ने कहा, ''कुछ सालों में भारत का गेंदबाजी आक्रमण मजबूत हुआ है। जसप्रीत बुमराह और मोहम्मद शमी शानदार गेंदबाजी कर रहे हैं। इसमें इशांत शर्मा, उमेश यादव, अश्विन और जडेजा को जोड़ दिया जाए तो टीम की ताकत और बढ़ जाती है। लेकिन ऑस्ट्रेलियाई परिस्थितियों में भारतीय स्पिनर्स संघर्ष करते हैं। यहां नाथन लियोन का रिकॉर्ड भारतीय स्पिनर्स से अच्छा है।''


 



  •  लियोन ने घर में भारत के खिलाफ 4 बार 5 विकेट लिए



लियोन ने ऑस्ट्रेलिया में खेले 45 टेस्ट में 171 विकेट लिए हैं। इसमें भारत के खिलाफ 51 विकेट हैं, जो उन्होंने 11 टेस्ट में हासिल किए। वह घरेलू जमीन पर 4 मौकों पर भारत के खिलाफ 5 विकेट ले चुके हैं। अश्विन ने अब तक


ऑस्ट्रेलिया में खेले 7 टेस्ट में 27 विकेट लिए हैं। वह यहां एक बार भी 5 विकेट नहीं ले पाएं हैं जबकि करियर में वह 27 बार ऐसा कर चुके हैं। भारतीय स्पिनर ने 70 टेस्ट में 362 विकेट लिए हैं।  



  • 'न्यूजीलैंड के खिलाफ पहले टेस्ट में टीम में बदलाव की उम्मीद नहीं'


पॉन्टिंग ने न्यूजीलैंड सीरीज को लेकर कहा, मुझे पहले टेस्ट के प्लेइंग-11 में बदलाव होता नहीं दिख रहा है। क्योंकि टीम अच्छा खेल रही है। उसने हाल ही में पाकिस्तान को दो मैचों की सीरीज में हराया है। इस जीत के साथ आईसीसी टेस्ट चैंपियनशिप में ऑस्ट्रेलिया दूसरे स्थान पर आ गया है। उसके 7 मैचों से 176 अंक है। जबकि पहले स्थान पर 360 अंकों के साथ भारत है। 



  • ऑस्ट्रेलिया-न्यूजीलैंड के बीच 12 दिसंबर को खेला जाएगा पहला टेस्ट


ऑस्ट्रेलिया-न्यूजीलैंड के बीच 3 मैचों की टेस्ट सीरीज की शुरुआत 12 दिसंबर से पर्थ में होगी। दूसरा टेस्ट 26 दिसंबर से मेलबर्न जबकि तीसरा 3 जनवरी से सिडनी में खेला जाएगा। 



Sunday 1 December 2019

राज ठाकरे का क्या है भविष्य


राज ठाकरे का क्या है भविष्य, क्या उद्धव की चिंता बढ़ाएंगे या उनके क़रीब चले जाएंगे?



शिवसेना-बीजेपी के अलग होने और शिवसेना के एनसीपी और कांग्रेस के साथ जाने के बाद से यह चर्चा ज़ोर पकड़ रही है कि अब राज ठाकरे का राजनीतिक भविष्य क्या होगा. शनिवार को विधानसभा में हुए बहुमत परीक्षण में महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के विधायक तटस्थ रहे थे. उन्होंने किसी के पक्ष में वोट नहीं डाला था.


महाराष्ट्र की राजनीति में ऐतिहासिक परिवर्तन हो रहे हैं, ऐसे में क्या महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे) की राजनीति भी बदेलगी?


बीबीसी के भारतीय भाषाओं के डिजिटल एडिटर मिलिंद खांडेकर की माने तो राज ठाकरे के पास अब बीजेपी के साथ जाने का विकल्प है.


मिलिंद बताते हैं, ''राज ठाकरे की पार्टी मनसे को 13 साल से अधिक समय हो गया है. उन्हें अभी तक राज्य की सरकार में हिस्सेदारी नहीं मिली. जब मनसे का गठन हुआ था तब महाराष्ट्र में कांग्रेस-एनसीपी गठबंधन की सरकार थी उसके बाद 2014 में बीजेपी सत्ता में आ गई और अब शिवसेना सरकार का नेतृत्व कर रही है. तो ऐसी सूरत में मनसे के पास बीजेपी के साथ जाने के अलावा कोई दूसरा विकल्प नहीं है. लेकिन सवाल यह है कि क्या बीजेपी मनसे के साथ जाने के लिए तैयार होगी.''


मिलिंद अपने बातों को और विस्तार देते हुए कहते हैं, ''राज ठाकरे का प्रभाव क्षेत्र मुंबई से बाहर नहीं है. उनकी पकड़ मुंबई और नासिक में है. उनकी पार्टी की पकड़ पूरे राज्य पर नहीं है. इसलिए फ़िलहाल ऐसा नहीं लग रहा कि बीजेपी उनके साथ जा रही है. यह सवाल चुनाव के दौरान ज़रूर उठ सकता है. फ़िलहाल तो राज ठाकरे के लिए चुप रहने के सिवाए कोई दूसरा रास्ता नहीं है.''


वहीं वरिष्ठ पत्रकार धवल कुलकर्णी मानते हैं कि राज ठाकरे को जब मौक़ा मिलेगा तो वो शिवसेना के लिए चुनौती ज़रूर पेश करेंगे.


धवल कुलकर्णी कहते हैं, ''अगर राज ठाकरे शिवसेना के लिए मुश्किलें खड़ी करेंगे तो उन्हें बीजेपी का साथ भी मिलेगा. शिवसेना, एनसीपी और कांग्रेस के बीच वैसे भी विचारधारा के स्तर पर सामंजस्य की कमी है. शिवसेना को सरकार चलाते समय हिंदुत्व और मराठी अस्तित्व के अपने दो अहम मुद्दों को पीछे रखना होगा. ऐसी हालत में जब शिवसेना मराठी अस्तित्व के मुद्दे पर पीछे हटेगी तो मनसे के पास इस मुद्दे को उठाने का मौक़ा रहेगा और शिवसेना के लिए मुश्किलें भी पैदा कर सकती है.''


''वैसे राज ठाकरे के रुतबे में पहले के मुक़ाबले गिरावट आई है. साल 2009 में उनके 13 विधायक थे जबकि साल 2014 और 2019 में उनके सिर्फ़ एक विधायक ही विधानसभा तक पहुंच सके. लेकिन हमें राज ठाकरे के जलवे पर शक़ नहीं करना चाहिए, वो किसी भी मौक़े को भुनाने में पीछे नहीं रहते. उन्होंने ऐसा ही काम उत्तर भारतीय और मराठा पहचान के मुद्दे पर भी किया है. क्या पता आने वाले पांच सालों में हमें दोबारा पुराने वाले राज ठाकरे देखने को मिले.''



'राज ठाकरे को काम करने की ज़रूरत'



अगर राज ठाकरे को राज्य की राजनीति में अपनी छाप छोड़नी है तो उन्हें काम की ज़रूरत पड़ेगी. ऐसा मानना है वरिष्ठ पत्रकार विजय छोमारे का.


वो कहते हैं, ''महाराष्ट्र की संसदीय राजनीति में राज ठाकरे की कोई जगह नहीं है, क्योंकि उनकी पार्टी से सिर्फ़ एक ही विधायक हैं. मौजूदा हालात में वो किसी का साथ दें उसका कोई मतलब नहीं है. तो अगर राज ठाकरे को राज्य की राजनीति में ख़ुद को ज़िंदा रखना है तो उन्हें काम करना होगा, जो उन्होंने अभी तक नहीं किया है.''


''राज ठाकरे ने पार्टी संगठन को मज़बूत करने की दिशा में अधिक काम नहीं किया है. जब चुनाव आते हैं तब वो सिर्फ़ कुछ रैलियां करते हैं और सरकार की आलोचना करते हैं. लेकिन एक राजनीतिक दल को आगे बढ़ने के लिए और भी बहुत कुछ करना होता है.''


''पिछले पांच साल में उनके पास कई बड़े मौक़े थे लेकिन उन्होंने कभी भी उसे गंभीरता से नहीं लिया. समसामयिक राजनीति में उनका स्थान ऐसा हो गया है जैसे वो या तो सिर्फ़ उन्हीं मुद्दों पर बोलेंगे जिनकी उन्हें चिंता है या फिर जब उनके कार्यकर्ता किसी विरोध में हिस्सा ले रहे होंगे.''


क्या राज ठाकरे और उद्धव ठाकरे साथ आएंगे?


राज ठाकरे शिवाजी मैदान में आयोजित हुए उद्धव ठाकरे के शपथ ग्रहण समारोह में शामिल हुए थे. इसके साथ ही राज और उद्धव दोनों ही शरद पवार के क़रीबी बताए जाते हैं. ऐसे में इस बात की चर्चा भी गर्म है कि क्या दोनों भाई एक बार फिर साथ मिलकर काम करेंगे. हालांकि वरिष्ठ पत्रकार अभिजीत ब्रह्मांठकर इन अटकलों को खारिज करते हैं.


वो कहते हैं, ''परिवार के साथ खड़ा होना और राजनीतिक क़दम उठाना, इन दोनों में बड़ा फ़र्क़ होता है. कुछ दिन पहले जब यह घोषणा हुई थी कि वर्ली से आदित्य ठाकरे चुनाव लड़ेंगे तो राज ठाकरे ने वहां से मनसे का उम्मीदवार नहीं उतारा. वो इस बात को हवा नहीं देना चाहते थे कि राज ठाकरे ने जानबूझकर ठाकरे परिवार के सदस्य के ख़िलाफ़ उम्मीदवार खड़ा किया है.''


''दूसरी बात यह है कि राज ठाकरे ने हमेशा परिवार और राजनीति को अलग-अलग रखा है. जब उनके बेटे अमित की शादी थी तब वो उद्धव ठाकरे को न्योता देने ख़ुद गए थे. उस शादी समारोह में उद्धव ठाकरे, आदित्य ठाकरे और रश्मी ठाकरे सभी शामिल हुए थे. अब जब उद्धव ठाकरे का शपथ ग्रहण समारोह था तो राज ठाकरे उसमें शामिल हुए. लेकिन इसका यह मतलब बिलकुल नहीं है कि ये दोनों भाई राजनीतिक तौर पर साथ आ जाएंगे.''



मनसे की क्या स्थिति है?


मनसे के प्रवक्ता संदीप देशपांडे ने बीबीसी के साथ बातचीत में कहा था कि मनसे अपने महाराष्ट्र धर्म के रास्ते पर ही चलती रहेगी और मराठी मानुष के पक्ष लेगी.


संदीप देशपांडे कहते हैं, ''इस तरह के निष्कर्ष निकालने का कोई फ़ायदा नहीं कि मनसे बीजेपी के साथ चली जाएगी या किसी और पार्टी के साथ चली जाएगी. एनसीपी, शिवसेना और कांग्रेस के साथ आने का यह मतलब नहीं कि मनसे बीजेपी के साथ जाने वाली है. मनसे अपनी भविष्य की रणनीति यह देखने के बाद तय करेगी कि महा विकास अगाढ़ी की सरकार कैसे काम करती है. वो क्या सही और ग़लत फ़ैसले लेती है, उनके फ़ैसले मराठी मानुष के हित में होते हैं या नहीं.''


राज और उद्धव ठाकरे के साथ आने की संभावनाओं पर देशपांडे कहते हैं, ''मुझे नहीं लगता कि उद्धव और राज ठाकरे साथ आएंगे. मनसे और शिवसेना की विचारधारा अलग-अलग है. शिवसेना मराठी मानुष के समर्थन की सिर्फ बात करती है लेकिन मनसे के कार्यकर्ता मराठी मानुष के लिए लड़ते हुए जेल तक जाते हैं. मनसे अपने इसी रास्ते पर आगे भी चलती रहेगी.''



मोदी सरकार सुस्त अर्थव्यवस्था को रफ़्तार क्यों नहीं दे पा रही

इसी सप्ताह भारत सरकार ने जीडीपी यानी सकल घरेलू उत्पाद के नए आंकड़े जारी किए और इन आंकड़ों ने इस बात की पुष्टी कर दी है कि भारतीय अर्थव्यवस्था लगातार ख़राब दौर से गुज़र रही है.




मौजूदा तिमाही में जीडीपी 4.5 फ़ीसद पर पहुंच गई जो पिछले छह साल में सबसे निचले स्तर पर है. पिछली तिमाही की भारत की जीडीपी 5 फ़ीसदी रही थी.


इस साल जुलाई में बजट पेश होने के बाद से सरकार ने अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए कई कदम उठाए हैं.


लेकिन अर्थव्यवस्था से जुड़े आंकड़ें देखने पर सवाल उठता है कि क्या सरकार के उठाए क़दम कारगर साबित हो रहे हैं?


 


पढ़िए शिशिर सिन्हा का नज़रिया -



इस दरमियान आप देखेंगे कि सरकार की तरफ़ से 30 से भी अधिक ऐसे क़दम उठाए गए हैं.


लेकिन सबसे अधिक चर्चा जिस बात की हुई है वो है कॉर्पोरेट टैक्स कट की. 20 सितंबर को कॉर्पोरेट टैक्स में कमी करने की घोषणा हुई थी.


इस टैक्स में कमी के दो स्तर हैं. 22 प्रतिशत की दर सभी कंपनियों पर लागू करने की बात हुई थी जबकि नई मैनुफ़ैक्चरिंग कंपनियों पर 15 प्रतिशत की दरों की बात हुई थी.


सबसे बड़ा सवाल ये उठा कि क्या इस नई कटौती का अर्थव्यवस्था को कोई फ़ायदा हुआ या नहीं.



अभी तक की स्थिति को देखें तो पता चलता है कि उसकी वजह से भारत में अब तक कोई नया निवेश नहीं आया है.


लेकिन इसके पीछे एक बड़ी वजह भी है. इस तरह के किसी फ़ैसले का असर देखने में दो-तीन महीने लगते हैं, कभी-कभी छह महीने तक भी लग जाता है.


अगर शेयर बाज़ार में देखें तो, बजट में सुपर रिच सरचार्ज जो बढ़ाया गया था उसका बुरा असर शेयर बाज़ार पर पड़ा था.


बाद में सरकार ने ये क़दम वापस ले लिया था लेकिन शेयर बाज़ार को तब तक हानि पहुंच चुकी थी. शेयर बाज़ार उस स्थिति से बहुत जल्दी नहीं उबर पाया.


उसके बाद अब भारतीय शेयर बाज़ार में जो स्थिति देखने को मिल रही है उसके लिए देश के भीतर के घटक उतने ज़िम्मेदार नहीं हैं जितना कि वैश्विक आर्थिक स्थिति है.


भारतीय अर्थव्यवस्था को प्रभावित करने वाले वैश्विक कारण



दूसरा कारण ये है कि यूरोप, अमरीका, पूरे अफ्रीका या फिर पूरे एशिया में - दुनिया के तमाम देशों में कहीं न कहीं अर्थव्यवस्था सुस्त पड़ी हुई है. कई जगहों पर मंदी की स्थिति है.अमरीका और चीन के बीच जो व्यापार युद्ध की स्थिति है उस कारण पूरी दुनिया की अर्थव्यवस्था पर प्रभाव पड़ा है. भारतीय अर्थव्यवस्था के प्रभावित होने का सबसे बड़ा कारण यही है.


किसी भी देश की कमाई होने के लिए ज़रूरी है कि देश में बनने वाला सामान बिके. अगर हमारा सामान देश के बाहर बिकेगा तभी तो कमाई होगी.


भारत के ऊपर तो दोहरी मार है- भारत के भीतर घरेलू बाज़ार में भी माल नहीं बिक रहा और रही विदेशी बाज़ार की बात तो वहां हमारा माल ख़रीदने वाला कोई नहीं क्योंकि वहां स्थिति ख़राब है.


ये वो कारण हैं जिन्होंने भारतीय अर्थव्यवस्था को कुछ हद तक प्रभावित किया है.


क्या अर्थव्यवस्था को लेकर हुई है नीतिगत ग़लतियां?



अर्थव्यवस्था ऐसी गाड़ी है जो निवेश और खपत दो पहियों पर चलती है.भारत ने अब तक निवेश बढ़ाने के उपाय किए हैं. लेकिन ज़रूरी ये भी है कि साथ-साथ खपत बढ़ाने के बारे में क़दम उठाए जाएं.


अगर सरकार निवेश बढ़ाती है लेकिन खपत बढ़ाने के लिए क़दम नहीं उठाती तो उसका कुछ न कुछ असर दिखता है.


बात बजट की हो या फिर उसके बाद की बात हो, ख़ासतौर पर कॉर्पोरेट टैक्स में कमी करने की बात हो - ये निवेश बढ़ाने के लिए बड़ा क़दम था.


खपत बढ़ाने के लिए सरकार को आयकर में कमी करने की ज़रूरत होगी.



आयकर में कमी की जाएगी तो लोगों के हाथों में अधिक पैसे आएंगे. इसके साथ अगर लोगों को भरोसा दिलाया जाता है कि उन्हें चिंता करने की ज़रूरत नहीं है और उनकी नौकरियां सुरक्षित हैं, तो लोग खपत करना शुरू करेंगे.


खपत बढ़ेगी तो उद्योग जगत अधिक निवेश करने और अधिक सामान बनाने के लिए उत्साहित होगा.


पूरी व्यवस्था में जो एक कमी है वो ये है कि खपत बढ़ाने के लिए लोगों के हाथों में अधिक पैसे देने का इंतज़ाम सरकार ने नहीं किया है.


अगर सरकार ने ये काम कर दिया तो अर्थव्यवस्था की स्थिति काफ़ी बेहतर हो सकती है.