राज ठाकरे का क्या है भविष्य, क्या उद्धव की चिंता बढ़ाएंगे या उनके क़रीब चले जाएंगे?
शिवसेना-बीजेपी के अलग होने और शिवसेना के एनसीपी और कांग्रेस के साथ जाने के बाद से यह चर्चा ज़ोर पकड़ रही है कि अब राज ठाकरे का राजनीतिक भविष्य क्या होगा. शनिवार को विधानसभा में हुए बहुमत परीक्षण में महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के विधायक तटस्थ रहे थे. उन्होंने किसी के पक्ष में वोट नहीं डाला था.
महाराष्ट्र की राजनीति में ऐतिहासिक परिवर्तन हो रहे हैं, ऐसे में क्या महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे) की राजनीति भी बदेलगी?
बीबीसी के भारतीय भाषाओं के डिजिटल एडिटर मिलिंद खांडेकर की माने तो राज ठाकरे के पास अब बीजेपी के साथ जाने का विकल्प है.
मिलिंद बताते हैं, ''राज ठाकरे की पार्टी मनसे को 13 साल से अधिक समय हो गया है. उन्हें अभी तक राज्य की सरकार में हिस्सेदारी नहीं मिली. जब मनसे का गठन हुआ था तब महाराष्ट्र में कांग्रेस-एनसीपी गठबंधन की सरकार थी उसके बाद 2014 में बीजेपी सत्ता में आ गई और अब शिवसेना सरकार का नेतृत्व कर रही है. तो ऐसी सूरत में मनसे के पास बीजेपी के साथ जाने के अलावा कोई दूसरा विकल्प नहीं है. लेकिन सवाल यह है कि क्या बीजेपी मनसे के साथ जाने के लिए तैयार होगी.''
मिलिंद अपने बातों को और विस्तार देते हुए कहते हैं, ''राज ठाकरे का प्रभाव क्षेत्र मुंबई से बाहर नहीं है. उनकी पकड़ मुंबई और नासिक में है. उनकी पार्टी की पकड़ पूरे राज्य पर नहीं है. इसलिए फ़िलहाल ऐसा नहीं लग रहा कि बीजेपी उनके साथ जा रही है. यह सवाल चुनाव के दौरान ज़रूर उठ सकता है. फ़िलहाल तो राज ठाकरे के लिए चुप रहने के सिवाए कोई दूसरा रास्ता नहीं है.''
वहीं वरिष्ठ पत्रकार धवल कुलकर्णी मानते हैं कि राज ठाकरे को जब मौक़ा मिलेगा तो वो शिवसेना के लिए चुनौती ज़रूर पेश करेंगे.
धवल कुलकर्णी कहते हैं, ''अगर राज ठाकरे शिवसेना के लिए मुश्किलें खड़ी करेंगे तो उन्हें बीजेपी का साथ भी मिलेगा. शिवसेना, एनसीपी और कांग्रेस के बीच वैसे भी विचारधारा के स्तर पर सामंजस्य की कमी है. शिवसेना को सरकार चलाते समय हिंदुत्व और मराठी अस्तित्व के अपने दो अहम मुद्दों को पीछे रखना होगा. ऐसी हालत में जब शिवसेना मराठी अस्तित्व के मुद्दे पर पीछे हटेगी तो मनसे के पास इस मुद्दे को उठाने का मौक़ा रहेगा और शिवसेना के लिए मुश्किलें भी पैदा कर सकती है.''
''वैसे राज ठाकरे के रुतबे में पहले के मुक़ाबले गिरावट आई है. साल 2009 में उनके 13 विधायक थे जबकि साल 2014 और 2019 में उनके सिर्फ़ एक विधायक ही विधानसभा तक पहुंच सके. लेकिन हमें राज ठाकरे के जलवे पर शक़ नहीं करना चाहिए, वो किसी भी मौक़े को भुनाने में पीछे नहीं रहते. उन्होंने ऐसा ही काम उत्तर भारतीय और मराठा पहचान के मुद्दे पर भी किया है. क्या पता आने वाले पांच सालों में हमें दोबारा पुराने वाले राज ठाकरे देखने को मिले.''
'राज ठाकरे को काम करने की ज़रूरत'
अगर राज ठाकरे को राज्य की राजनीति में अपनी छाप छोड़नी है तो उन्हें काम की ज़रूरत पड़ेगी. ऐसा मानना है वरिष्ठ पत्रकार विजय छोमारे का.
वो कहते हैं, ''महाराष्ट्र की संसदीय राजनीति में राज ठाकरे की कोई जगह नहीं है, क्योंकि उनकी पार्टी से सिर्फ़ एक ही विधायक हैं. मौजूदा हालात में वो किसी का साथ दें उसका कोई मतलब नहीं है. तो अगर राज ठाकरे को राज्य की राजनीति में ख़ुद को ज़िंदा रखना है तो उन्हें काम करना होगा, जो उन्होंने अभी तक नहीं किया है.''
''राज ठाकरे ने पार्टी संगठन को मज़बूत करने की दिशा में अधिक काम नहीं किया है. जब चुनाव आते हैं तब वो सिर्फ़ कुछ रैलियां करते हैं और सरकार की आलोचना करते हैं. लेकिन एक राजनीतिक दल को आगे बढ़ने के लिए और भी बहुत कुछ करना होता है.''
''पिछले पांच साल में उनके पास कई बड़े मौक़े थे लेकिन उन्होंने कभी भी उसे गंभीरता से नहीं लिया. समसामयिक राजनीति में उनका स्थान ऐसा हो गया है जैसे वो या तो सिर्फ़ उन्हीं मुद्दों पर बोलेंगे जिनकी उन्हें चिंता है या फिर जब उनके कार्यकर्ता किसी विरोध में हिस्सा ले रहे होंगे.''
क्या राज ठाकरे और उद्धव ठाकरे साथ आएंगे?
राज ठाकरे शिवाजी मैदान में आयोजित हुए उद्धव ठाकरे के शपथ ग्रहण समारोह में शामिल हुए थे. इसके साथ ही राज और उद्धव दोनों ही शरद पवार के क़रीबी बताए जाते हैं. ऐसे में इस बात की चर्चा भी गर्म है कि क्या दोनों भाई एक बार फिर साथ मिलकर काम करेंगे. हालांकि वरिष्ठ पत्रकार अभिजीत ब्रह्मांठकर इन अटकलों को खारिज करते हैं.
वो कहते हैं, ''परिवार के साथ खड़ा होना और राजनीतिक क़दम उठाना, इन दोनों में बड़ा फ़र्क़ होता है. कुछ दिन पहले जब यह घोषणा हुई थी कि वर्ली से आदित्य ठाकरे चुनाव लड़ेंगे तो राज ठाकरे ने वहां से मनसे का उम्मीदवार नहीं उतारा. वो इस बात को हवा नहीं देना चाहते थे कि राज ठाकरे ने जानबूझकर ठाकरे परिवार के सदस्य के ख़िलाफ़ उम्मीदवार खड़ा किया है.''
''दूसरी बात यह है कि राज ठाकरे ने हमेशा परिवार और राजनीति को अलग-अलग रखा है. जब उनके बेटे अमित की शादी थी तब वो उद्धव ठाकरे को न्योता देने ख़ुद गए थे. उस शादी समारोह में उद्धव ठाकरे, आदित्य ठाकरे और रश्मी ठाकरे सभी शामिल हुए थे. अब जब उद्धव ठाकरे का शपथ ग्रहण समारोह था तो राज ठाकरे उसमें शामिल हुए. लेकिन इसका यह मतलब बिलकुल नहीं है कि ये दोनों भाई राजनीतिक तौर पर साथ आ जाएंगे.''
मनसे की क्या स्थिति है?
मनसे के प्रवक्ता संदीप देशपांडे ने बीबीसी के साथ बातचीत में कहा था कि मनसे अपने महाराष्ट्र धर्म के रास्ते पर ही चलती रहेगी और मराठी मानुष के पक्ष लेगी.
संदीप देशपांडे कहते हैं, ''इस तरह के निष्कर्ष निकालने का कोई फ़ायदा नहीं कि मनसे बीजेपी के साथ चली जाएगी या किसी और पार्टी के साथ चली जाएगी. एनसीपी, शिवसेना और कांग्रेस के साथ आने का यह मतलब नहीं कि मनसे बीजेपी के साथ जाने वाली है. मनसे अपनी भविष्य की रणनीति यह देखने के बाद तय करेगी कि महा विकास अगाढ़ी की सरकार कैसे काम करती है. वो क्या सही और ग़लत फ़ैसले लेती है, उनके फ़ैसले मराठी मानुष के हित में होते हैं या नहीं.''
राज और उद्धव ठाकरे के साथ आने की संभावनाओं पर देशपांडे कहते हैं, ''मुझे नहीं लगता कि उद्धव और राज ठाकरे साथ आएंगे. मनसे और शिवसेना की विचारधारा अलग-अलग है. शिवसेना मराठी मानुष के समर्थन की सिर्फ बात करती है लेकिन मनसे के कार्यकर्ता मराठी मानुष के लिए लड़ते हुए जेल तक जाते हैं. मनसे अपने इसी रास्ते पर आगे भी चलती रहेगी.''